वेदों में जाति विवक्षा नहीं

जाति-भेद से हमारा मतलब उस भेदभाव से है जो आज हमारे देश में फैला हुआ है, जिसके अनुसार आदमी का रहन-सहन, शादी-विवाह और अन्य सामाजिक व्यवहार केवल उसी जाति या बिरादरी में हो सकता जिसमेæ
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