स्वामी विवेकानन्द
“यदि कोई व्यक्ति यह समझता है कि वह दूसरे धर्मों का विनाश कर अपने धर्म की विजय कर लेगा, तो बन्धुओं! उसकी यह आशा कभी भी पूरी नहीं होने वाली। सभी धर्म हमारे अपने हैं, इस भाव से उन्हें अपनाकर ही हम अपना और सम्पूर्ण मानवजाति का विकास कर पायेंगे। यदि भविष्य में कोई ऐसा धर्म उत्पन्न हुआ जिसे सम्पूर्ण विश्व का धर्म कहा जाएगा तो वे अनन्त और निर्बाध होगा। वह धर्म न तो हिन्दू होगा, न मुसलमान, न बौद्ध, न ईसाई अपितु वह इन सबके मिलन और सामंजस्य से पैदा होगा।“
ये ही वो शब्द हैं, जिन्होंने विश्वमंच पर भारत की सिरमौर छवि को प्रस्तुत किया और संसार को यह मानने को विवश कर दिया कि भारत वास्तव में विश्वगुरु है। क्या आप जानते हैं, ये शब्द किसने कहे थे? ये शब्द 11 सितम्बर सन् 1893 को शिकागो (अमेरिका) में आयोजित विश्वधर्मसभा के मंच पर स्वामी विवेकानन्द ने कहे थे............
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9 months ago 00:17:49 1
स्वामी विवेकानन्द | SWAMI VIVEKANANDA
11 months ago 00:05:35 1
देशप्रेमी संन्यासी | स्वामी विवेकानन्द | SWAMI VIVEKANANDA