सुभाषितम्- ०९/०७/२०२०
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते ।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव च।।
―संस्कृतभारती मेरठप्रान्त
भावार्थ- निश्चित एवं साध्य कर्म को छोड़कर अनिश्चित एवं असाध्य कर्मों की ओर दौड़ने वाला मनुष्य कभी सफल नहीं होता। ऐसी स्थिति में वह दोनों से ही रिक्त हो जाता है। इसलिए जिस कार्य में सफलता निश्चित हो, मनुष्य को केवल वही कार्य करना चाहिए।🌹
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