साँस-साँस में बाँस - एलेक्स एम. जॉर्ज | saans-saans mein baans | CBSE | CLASS 6 | NCERT | CHAPTER 17
साँस-साँस में बाँस - एलेक्स एम. जॉर्ज (अनुवाद- शशि सबलोक) | saans-saans mein baans | CBSE | HINDI | CLASS 6 | NCERT | CHAPTER 17
बाँस से मेरा रिश्ता
बाँस का यह झुरमुट मुझे अमीर बना देता है। इससे मैं अपना घर बना सकता हूँ, बाँस के बरतन और औज़ार इस्तेमाल करता हूँ, सूखे बाँस को मैं ईंधन की तरह इस्तेमाल करता हूँ, बाँस का कोयला जलाता हूँ, बाँस का अचार खाता हूँ, बाँस के पालने में मेरा बचपन गुज़रा, पत्नी भी तो मैंने बाँस की टोकरी के ज़रिए पाई और फिर अंत में बाँस पर ही लिटाकर मुझे मरघट ले जाया जाएगा।
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एक जादूगर थे चंगकीचंगलनबा। अपने जीवन में उन्होंने कई बड़े-बड़े करतब दिखलाए। जब मरने को हुए तो लोगों से बोले, “मुझे दफ़नाए जाने के छठे दिन मेरी कब्र खोदकर देखोगे तो कुछ नया सा पाओगे।“
कहा जाता है कि मौत के छठे दिन उनकी कब्र खोदी गई और उसमें से निकले बाँस की टोकरियों के कई सारे डिजाइन। लोगों ने उन्हें देखा. पहले उनकी नकल की और फिर नए डिज़ाइन भी बनाए।
बाँस भारत के विभिन्न हिस्सों में बहुतायत में होता है। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सातों राज्यों में बाँस बहुत उगता है। इसलिए वहाँ बाँस की चीजें बनाने का चलन भी खूब है। सभी समुदायों के भरण-पोषण में इसका बहुत हाथ है। यहाँ हम खासतौर पर देश के उत्तरी-पूर्वी राज्य नागालैंड की बात करेंगे। नागालैंड के निवासियों में बाँस की चीजें बनाने का खूब प्रचलन है।
इंसान ने जब हाथ से कलात्मक चीजें बनानी शुरू की, बाँस की चीजें तभी से बन रही है। आवश्यकता के अनुसार इसमें बदलाव हुए है और अब भी हो रहे हैं।
कहते हैं कि बाँस की बुनाई का रिश्ता उस दौर से है, जब इंसान भोजन इकट्ठा करता था। शायद भोजन इकट्ठा करने के लिए ही उसने ऐसी डलियानुमा चीजें बनाई होंगी।
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